रोहित मिश्र प्रस्तुति-"तिनका का लङकपन"
4:30 am Posted In रोहित मिश्र प्रस्तुति Edit This 0 Comments »जा गिरा हिमालय की गोद में।
बातों में वज़न था, पर था हल्का,
वाह! लाज़वाब बना यह मुझे ओढ़ के।
एह्शान जताता, घमंड भी करता।
पूछा-"मेरे बिना तू क्या करता"?
नींद से जागने पर लेकर अंगराई ,
जवाब हुआ उसका यह कि तेज़ पवन आई।
जा गिरा तिनका मुख के बल ,
फिर वह उठा गुस्से से उबल।
कहा -"काफिर तेरी यह हिम्मत"!
मुझ से ही बना तेरे आसियाने का छत।
"मेरे बातों का प्रभाव नहीं"।
लगता है तू
कृतघ्न है कृतज्ञ नहीं।
गरज उठा हिमालय,धरती कांप उठी,
गरज उठा हिमालय,धरती कांप उठी,
गहराई खाई तक कम्पन से सटी।
तेरी ज़रूरत है कि तूने मुझे बनाया,
आश्रय चाह्यिये था तुझे!
बारी-बारी से तुमने मुझमे समाया।
तुम्हारी अक्षमता का परिणाम में।
दुनिया में अनेकों भवन है,
क्या तुम सभी पर दावा करोगे।
सुनों-धरती पर जीवन है तो मरण है।
पर वह न मन और चीखा ,
एए "काफिर" चुप रह....
इतने में हिमालय के अश्रु कण छलके,
जब गया वह ठंड में जम के।
लघु कि गुणवत्ता का वर्णन नहीं।
पर महाकाय के गुणों का आकलण॥
व्यर्थ के दावों पर अनर्थ सही ।
तिनका का जिस तरह था "लङकपन"॥
"रोहित मिश्र भारद्वाज"