रोहित मिश्र प्रस्तुति-"तिनका का लङकपन"

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पवन बहाव में एक तिनका ;
जा गिरा हिमालय की गोद में।
बातों में वज़न था, पर था हल्का,
वाह! लाज़वाब बना यह मुझे ओढ़ के।
एह्शान जताता, घमंड भी करता।
पूछा-"मेरे बिना तू क्या करता"?
नींद से जागने पर लेकर अंगराई ,
जवाब हुआ उसका यह कि तेज़ पवन आई।
जा गिरा तिनका मुख के बल ,
फिर वह उठा गुस्से से उबल।
कहा -"काफिर तेरी यह हिम्मत"!
मुझ से ही बना तेरे आसियाने का छत।
"मेरे बातों का प्रभाव नहीं"।
लगता है तू
कृतघ्न है कृतज्ञ नहीं।
गरज उठा हिमालय,धरती कांप उठी,
गहराई खाई तक कम्पन से सटी।
तेरी ज़रूरत है कि तूने मुझे बनाया,
आश्रय चाह्यिये था तुझे!
बारी-बारी से तुमने मुझमे समाया।
तुम्हारी अक्षमता का परिणाम में।
दुनिया में अनेकों भवन है,
क्या तुम सभी पर दावा करोगे।
सुनों-धरती पर जीवन है तो मरण है।
पर वह न मन और चीखा ,
एए "काफिर" चुप रह....
इतने में हिमालय के अश्रु कण छलके,
जब गया वह ठंड में जम के।
लघु कि गुणवत्ता का वर्णन नहीं।
पर महाकाय के गुणों का आकलण॥
व्यर्थ के दावों पर अनर्थ सही ।
तिनका का जिस तरह था "लङकपन"॥
"रोहित मिश्र भारद्वाज"

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मानव का घर

चेतन समान तरु का जड़,
फैल मट्टी पर फेरे हार ।
स्वर्ग समन मानव का घर,
या धरती पर नरक का द्वार।
जड़ समान घर की नींव ,
निर्माण करती कर्मशील कर।
रक्षण हेतु जीवन का दीप ,
निर्मित यह "मानव का घर"॥

बसती गृह मे अंतरात्मा ,
जग कि बुराईयो से लड़॥
निवास हेतु पूजे जाते परमात्त्मा,
'मनु' निर्मित मानव का घर॥
निर्मित एक स्नेह का तालाब,
जिसमे फर्फराता खग अपने पर,
या फिर काटों का सैलाब,
बन्धन युक्त 'मानव का घर'॥
छत तले परिवार का गठन,
संभवतः गृह कुल का वर।
चालू होती अनुसस्निक पठन,
'विद्या घर' यह "मानव का घर"॥
रक्षित है आत्मसम्मान का धन,
पर शान्ति की गैरमौजूदगी क्यों॥
नव कोमलतर पवन कण,
मानव का घर निर्मित यूं॥
कलह -घुटन जब होती प्राविस्ट,
परिवार हो जाती तर -बतर ।
मोह लोभ तब करते आक्रिस्ट,
दरार युक्त "मानव का घर"॥
चोटी सी भी ज्वलित चिंगारी,
जला डालती प्रगति के पर।
स्नेही तालियाँ मे दुखित सवारी ,
क्या "स्नेह्मुक्त" है "मानव का घर"॥
" रोहित मिश्र भारद्वाज"

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पहचान मुझे
कविता लिखने का शौक़ मुझे,
जब तक कोई नाम ना सूझे।
बुझे दिए सा मान मुझे,
ऐय दुनिया पहचान मुझे!

जब कोई नाम सूझे तुझे,

एय दुनिया बता देना मुझे!
मोह विच्छेद करने को जूझे,
उफनता वर्नासागर मान मुझे।
दूंगा नगमों का बहार तुझे ,
एय दुनिया पहचान मुझे!

मान दिलों का चिराग मुझे,

दुनियां बदलने कि राह जब सूझे,

दूंगा बता मै तुझे,

तब जब मेरा नाम जब सूझे,

एय दुनियां पहचान मुझे!!
रोहित मिश्रा भारद्वाज